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आस्था और शक्ति का महापर्व छठ पूजा : मुंबई से मुंगेर खींच लाया मुझे 

इस साल मैं छठ पूजा के लिए  मुंबई से अपने घर बिहार आया हूँ ।  बिहार का महा पर्व, बिहार का गौरव और हमारे लिए एक भावनात्मक पर्व है छठ पूजा और मुंगेर तो जन्म अस्थल है छठ पूजा का । मैं बहुत  ही भागयशाली हूँ की मेरा भी जन्म मुंगेर में हुआ । तो सफर शुरू हुआ मेरा मुंबई एयरपोर्ट से । ये उत्साह इस लिए भी थी क्योंकि मैं घर दो साल के बाद जा रहा था। चेहरे की खुशी और आंखों को चमक मैं छुपा नहीं पा रहा था। सुबह की फ्लाइट से मुंबई से पटना पहुंचा और फिर मुंगेर तक  के सफर ट्रेन से पूरी की। 

इस साल मैं छठ पूजा के लिए  मुंबई से अपने घर बिहार आया हूँ ।  बिहार का महा पर्व, बिहार का गौरव और हमारे लिए एक भावनात्मक पर्व है छठ पूजा और मुंगेर तो जन्म अस्थल है छठ पूजा का । मैं बहुत  ही भागयशाली हूँ की मेरा भी जन्म मुंगेर में हुआ । तो सफर शुरू हुआ मेरा मुंबई एयरपोर्ट से । ये उत्साह इस लिए भी थी क्योंकि मैं घर दो साल के बाद जा रहा था। चेहरे की खुशी और आंखों की चमक मैं छुपा नहीं पा रहा था। सुबह की फ्लाइट से मुंबई से पटना पहुंचा और फिर मुंगेर तक  के सफर ट्रेन से पूरी की।  घर आने की खबर मैने किसी को दी नही थी तो उनके लिए मेरा घर आना किसी सरप्राइज़ से कम नहीं था। मां  की खुशियों का तो ठिकाना नहीं था  मुझे देखते ही गले से लिपट गई। चेहरे पर खुशी और आंखों में नमी ये वाला प्यार तो  बस मां ही कर सकती है। मुंगेर ! कितना अलग है न मुंबई से चाहे कितनी भी ऊंची इमारतों में रह लो लेकिन सुकून तो बस अपने घर में ही मिलती है। 

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दिवाली के  अगले दिन 

दिवाली के  अगले दिन से ही  शुरू हो जाती है  छठ पूजा की तैयारियां और ठीक चौथे दिन उसके अनुष्ठान और सारे रीति रिवाज। छठ पुजा के लिए घर के सारे लोग आ चुके है अब । मैं , मम्मी – पापा, भईया – भाभी और उनके शरारती बच्चे तो पहले से ही थे अभी मेरी दोनों दीदी अपने परिवार के साथ आई है। तो अब मेरा घर एक भरा – पूरा प्यार और शरारतों से सजा एक घर लग रहा है। दीदी के बच्चे पूरे दिन मामा – मामा का शोर मचाए हुए रहते है और मैं उनको अपनी सेवा में लगाए रहता हुं। मुंबई के शोर में और यहां में शोर में बहुत अंतर है। वहां मिलने वाले बहुत है पर अपना कहने वाला कौन है।

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नहाए- खाए 

दिवाली के ठीक चौथे दिन नहाए- खाए के दिन से शुरू हुआ छठ पूजा। जब मैं सोकर उठा तो मैने मां को देखा वो नहा धोकर एक गुलाबी रंग की साड़ी पहनकर खाना बना रही थी। घर का आंगन बिलकुल साफ सुथरा और सुगंधित। मां ने कहा मुझे नहा कर आजा फिर सब खाना खायेंगे। नहा कर जब मैं खाने बैठा मां को परोसी हुई थाली में चावल, लौकी और चने की दाल की सब्जी, आलू गोबी, भिंडी फ्राई, बैगन के पकोड़े और धनिया के पत्तियों को चटनी । मुझे याद नहीं के इतना सुंदर और स्वादिष्ट खाना मैने कब खाया होगा। आज से ही छठ पूजा के सारे अनुष्ठान और रीति रिवाज शुरू हो जाती  है । ये कद्दू -भात खाकर मां निर्जला व्व्रत प्रारंभ करती है।  

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खरना

खरना छठ पर्व का अगला और दूसरा दिन । इस दिन भी मिट्टी या पीतल के बर्तन में मिट्टी के चूल्हे पर पुजा के लिए प्रसाद बनता है जिसमे खीर, सेवई या रसिया बनाते है।  मां रसिया बनाती है जिसमे शुद्ध चीनी या गुड़ का इस्तमाल होता है । रसिया और फलाहार कर के  मां ने छठी मैया के लिए निर्जला व्रत किया। मैं बैठा बैठा मां को बड़े ध्यान से देखता रहा उसका शरीर थोड़ा थका सा दिख रहा था मुझे पर आस्था की शक्ति ने उसके मन को बिलकुल निर्मल कर रखा है।

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तीसरे दिन मां निर्जल व्रत को जारी रखते हुए सुबह नहा कर छठी मईया के पूजा का प्रसाद बनाती है जिसमे ठेकुआ, लड़वा ( चावल के आटे और मेवे के लड्डू)  बनाती है। मां एक सुप में ठेकुआ ,पूरी ,लड़वा, दूध, नींबू, नारियल, केला, सिंदूर, दीपक, कुमकुम, पान, सुपारी, धूपबत्ती और भी पूजा सामग्री रख उसे अगरबत्ती लगा कर सजाती है और  पूजती है। और फिर एक डाल में उन चीजों को रख देती है। संध्या समय पर घर के सभी लोग नए कपड़े पहन कर घाट पर जाने के लिए तैयार हुए। छोटे बच्चो में तो अलग ही ऊर्जा एक अलग ही उत्साह हो रही होती है।फिर गंगा घाट पर जाने के लिए घर के सारे लोग निकलते पापा और भैया डाल लेकर आगे चलते और मां पीछे पीछे। एक एक कर डाल कभी भईया के हाथ में और कभी मेरे हाथो में। इस समय घाटों की में बहुत रौनक होती है। पूरा वातावरण स्वच्छ और आस्था से भरा होता है।

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डूबते सूर्य की अर्घ्य

डूबते सूरज की पुजा सिर्फ हमारे बिहार में ही देखने को मिलेगा। घाट पर जाकर मां डाल से सारे पूजा सामग्री निकाल कर सूप में सजाती है और धूपबत्ती और अगरबत्ती लगा के गंगा मईया के पानी में अपने आधे शरीर को डूबा कर डूबते सूर्य की अर्घ्य देती है। मां को देखा मैने नई साड़ी, श्रृंगार और माथे पर लंबी सी सिंदूर की लकीरें। सच बताऊं तो मेरी मां तब इतनी सुंदर लगती है के मेरा मन होता है उसकी नज़रें उतार लूं।

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उगते सूर्य की अर्घ्य

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अगला दिन होता है छठ पुजा के समापन का दिन । रात को 3 बजे से ही मेरी भाभी और दीदी मिलकर सुबह का खाना बनाने की तैयारी में लग जाती है । सुबह की अर्घ्य के बाद मेरी मां यही खाना खाकर अपने दो दिनों का निर्जला व्रत पूरा करेगी। और फिर उसी तरह सुबह सुबह सूर्योदय से पहले घर के लोग गंगा घाट पर उगते सूर्य को अर्घ्य देने जाते है। वैसे पूरी रात घाट पर भजन कीर्तन और जागरण के साथ सूर्योदय का हर उपासक  इंतजार करते है। सवेरे के ठंडे गंगा घाट के पानी में मां उसी तरह अपने आधे शरीर को डुबाए सूरज देवता के उगने का इंतजार करती है। उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर मां घर के सारे लोगों को माथे पर टीका करती है और सब बड़े छोटे मां के पैर छूते है। इस समय मेरी मां मुझे बिल्कुल एक देवी के जैसी लगती है। मां प्रसाद को टीका लगाती है और घर आकर सारे घरों में बांटती है और अपने दो दिनों के छठी मईया के लिए निर्जला व्रत को पूरा करती है। मां को जब भी देखता हुं की वह अपने परिवार के लिए हम सब के लिए व्रत करती है सारे अनुष्ठानों का ध्यान रखती है तो ये समर्पण देख कर उनके प्रति सम्मान और प्रेम चरम सीमा पर होती है। 

मुझे बहुत गर्व होता है के मैं बिहार से हूं जहां हमारी संस्कृति इतनी अतुल्य है। मेरी तो छठी मईया से यही प्रार्थना है के हर साल अपनी मां को यूंही देवी के रूप में देखूं, हर साल ऐसे ही सजते हुए देखूं, हर साल ऐसे ही हमारी संस्कृति को सम्मानित होता हुआ देखूं और हर साल अपने शहर को आस्था और शक्ति में लीन होता हुआ देखूं ।

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