आज 28 सितम्बर है भारतीय इतिहास में इस दिन को बहुत ही ज्यादा महत्त्व दिया जाता है या यों कहा जाय की इस तारीख को भारतीय इतिहास के स्वर्णिम दिनों में से एक मना गया है|
बात 28 सितम्बर 1907 की जब लायलपुर जिले के बंगा जो की अब पाकिस्तान में है माता विद्यावती कौर और पिता सरदार किसन सिंह के घर जब इनका जन्म हुआ तब किसी को इस बात का पता नहीं था की ये आगे चलकर ये भारत की अटूट और अद्वित्य साहस का प्रतीक बनेगा| युगों युगों तक भारतीय युवाओं के दिलो में धड़कता रहेगा| भारतीय इतिहास में एक अविस्मरणीय छाप छोड़ जाएगा|
वैसे तो भगत सिंह के वीरता की गाथाएँ हर भारतीय के ज़हन में आज भी गूंजती रहती है| लेकिन आज मै भगत सिंह और उनका बिहार से लगाव की चर्चा करूँगा|
स्वंत्रता संग्राम की लड़ाई के दौरान वे हथियार और पैसो को एकत्रित करने 1929 में चम्पारण पधारें थे| जहाँ पर कमलनाथ तिवारी जैसे दर्जनों महान क्रांतिकारी ने हुकूमत के नाकों में दम कर रखा था| स्थानीयों की माने तो भगत सिंह के खास मित्र केदार मणि शुक्ल जी के आग्रह पर ही वे चंपारण आए थे| सिंह ने वेश बदल कर उदयपुर के जंगलों में भी कई राते बितायी है साथ ही चनपटिया के नागेश्वर दास मंदिर में भी ठहरे थे| लोग उन्हें प्यार से बबुआजी बुलाते थे |बतिया के महाराजा पुस्तकालय के मैदान में क्रांतिकारियों की सभा आयोजित की गई जहाँ से क्रान्तिकारियों के मन में असेम्बली पर बम फेकने की चिंगारी उठी|
भगत सिंह की बिहार में पहली प्रतिमा
भगत सिंह की शहादत के 20 साल बाद उनकी पहली प्रतिमा का अनावरण भगत सिंह की मां विद्यावती कौर और उनकी बहन ने मुंगेर में आकर किया था। हालाँकि इस बात का कोई लिखित प्रमाण तो नहीं है परन्तु मुंगेर शहर के बीचो-बीच एक भगत सिंह की प्रतिमा स्थापित है जो भगत सिंह चौक के नाम से प्रसिद्ध है| इसके पश्चिम के रास्ते सीधे गंगा घाट, पूरब और दक्षिण से मुंगेर मुख्य बाज़ार जबकि उत्तर का रास्ता सीधे राजधानी पटना की ओर जाता है| यहाँ आज भी भगत सिंह के जन्म दिवस और उनसे जुड़ी हर तारिख पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किये जाते है|
भगत सिंह और पूर्णिया
हालाँकि हुकूमत ने उन्हें 23 मार्च 1931 को ही फांसी पर चढ़ा दिया था लेकिन लोगों ने उन्हें आज तक मरने नहीं दिया कहीं न कही वे आज भी लोगों के दिलो और साहस में जीवित है| पूर्णिया जिला का एक ऐसा गाँव जहाँ शहीद भगत सिंह को लेकर लोगों में एक ऐसी दीवानगी है की गाँव के हर घर, हर दफ्तर, हर दूकान में भगत सिंह की कम से कम एक एक तश्वीर तो देखने को मिल ही जायेगी यहाँ के लोग सिंह को आराधना सुबह भगवान की आराधना के साथ करते है| गाँव की सीमा पर एक द्वार भी बनाया गया है जिसका नाम शहीद-ए–आज़म प्रवेश द्वार रखा गया है|
किस्से जो भी हो-जितने भी हो भगत सिंह के सच तो ये है की इनकी जीवन कथा न केवल युवाओं बल्कि बुजुर्गो को भी उर्जावान बना दे | आज भी युवाओं के स्टडी रूम में कम से कम एक ऐसी किताब तो मिल ही जायेगी जो भगत सिंह से प्रेरित हो|