“कांचे ही बांस के बहंगीया, बहंगी लचकत जाय’
होई न बालम जी कहरिया बहंगी घाट पहुंचाय”
शारदा सिन्हा के ये गाने सिर्फ एक धुन नहीं बल्कि हम बिहारियों के लिए भावना और उत्त्साह है|हमें दिवाली के बीत जाने के दुःख से ज्यादा ख़ुशी छठ पर्व के आने का होता है| हमे ख़ुशी होती है कि सालों भर कोई देश-विदेश कहीं भी हो लेकिन ये पर्व h(साल में एक बार पूरे परिवार को एक साथ ले आता है| लोग अपने दफ्तरों की छुट्टियाँ सिर्फ इस लिए बचा कर रखते है की वे छठ में अपने घर जा सके, अपने परिवार से , दोस्तों से, रिश्तेदारों से मिल सके या ऐसा कहें की सब के साथ छठ घाट जा सकें|

हमने अपने पिछले लेख में बताया था की छठ पर्व की शुरुआत कहाँ से और क्यों हुई थी|
आज हम बात करेंगे छठ माता है कौन है?
इसे लेकर कई मान्यताएं है| पुराणों में नवरात्र के दौरान पूजी जाने वाली माँ कात्यायनी को ही छठ माता कहा गया है| सनातन धर्म में उन्हें भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री यानी वह बेटी जिसके जन्म में शरीर की कोई भूमिका न हो मन से मन का मेल हो तरंगें टकराई और संतान का जन्म हो गया| यह बिलकुल वैसे ही है जैसा हॉलीवुड के किसी फिल्म में म्युटेंट्स का जन्म होता है और संयोग की बात है की हम इस पर भरोसा कर लेते है लेकिन हजारों वर्षों पहले वेदों-पुराणों में लिखी वही बातें हमे कोरी कल्पना लगती है|
छठ पर्व की शुरुआत कब हुई?
छठ पूजा की शुरुआत कब और कहाँ से हुई इसका कोई सटीक प्रमाण नहीं मिलता|रामायण काल में माता सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में (मुंगेर) में रह कर छठ का उपवास रख भगवान सूर्य की उपासना की|
यह भी कहा जाता है की अंग प्रदेश के राजा कर्ण जो सूर्य के पुत्र माने जाते है, वे नित्य सूर्य की उपासना करते थे और तभी से छठ पर्व की शुरुआत हुई|

चार दिनों का पर्व है छठ महापर्व
कद्दू-भात
हिंदी माह के कार्तिक शुक्ल पक्ष के चौथे दिन से शुरू होने वाला यह पर्व कार्तिक माह के सातवीं तिथि तक चलता है| इस पर्व के पहले दिन को नहाय-खाय, कद्दू-भात इत्यादि नामों से जाना जाता है| इस दिन से साफ़-सफाई, शुद्धता, और पवित्रता का खासमखास ध्यान रखा जाता है| इस दिन व्रती गंगा स्नान के बाद कद्दू-भात का प्रसाद खाकर अपने व्रत को आरम्भ करती है|
खरना पूजन
दूसरा दिन यानी की खरना पूजन इस का एक अलग ही महत्त्व है|खरना पूजन का रसिया यानी गुड़, केले दूध और चावल से बनी मीठी खीर का नाम सुनते हम बिहारियों के मुँह में पानी आ जाता है| सच कहें तो हमें किसी 5 स्टार रेस्टुरेंट के खाना से अच्छा और स्वादिष्ट खरना पूजन का प्रसाद लगता है| आज के प्रसाद के लिए लोग पूरे साल इंतज़ार करते हैं|

सूर्य अर्ग
वैसे तो अन्य देशों में डूबते सूर्य को बुराई और पतन का प्रतीक माना जाता है लेकिन हमारे लिए डूबता सूर्य भी उतना ही पूजनीय है जितना उगता सूर्य या ऐसा कहना गलत नहीं होगा की हम उगते सूर्य से पहले डूबते सूर्य की पूजा करते है|
कार्तिक शुक्ल पक्ष के छठे दिन मुख्य व्रत होता है इस दिन व्रती निर्जल उपवास रख कर जब गंगा घाट पर सभी व्रती एक साथ जब शारदा सिन्हा के लोक गीत जब एक स्वर में गाती है की,
“पहिले पहिले हम कईनी छठी मईया व्रत तोहार, छठी मईया व्रत तोहार
करिह क्षमा छठी मईया भूल चुक गलती हमार, भूल चुक गलती हमार,
“सब के बलकवा के दिहा छठी मैय्या ममता दुलार,
पिया के सनेहिया बनहिया मैय्या दिहा सुख सार”
ये लोक गीत एक ऐसी महिला गा रही है जिसने पहली बार छठ व्रत किया है और उसे इस व्रत का नियम नहीं पता है तो इसलिए अनजाने में हुई गलती के लिए वो छठ मैया से छमा मांग रही और साथ ही ये दुआ कर रही की सभी के बालक अर्थात संतान को खुश रखे और सभी को उसके पति का साथ मिलता रहे|
इस दिन शाम को डूबते हुए सूर्य को गंगा घाट पर अर्ग दिया जाता है| डूबते सूर्य की पूजा करना हमे यह सिखलाता है की जो हमारे लिए जले, जो हमारे लिए तपे वो चाहे जिस भी हाल में हो चाहे वो उत्थान की ओर हो या पतन की ओर हमारे लिए सदा पूजनीय है| यह पर्व हमे बताता है की जिसका आज पतन हुआ है उसका फिर से कल उदय होना तय है|
अगले दिन सुबह उदयांचल सूर्य को अर्ग देने के बाद व्रती अपना उपवास तोड़ती है और सभी में प्रसाद बांटा जाता है| प्रसाद के रूप में ठेकुआ, गुड़ चीनी और आटे से बना एक ऐसा पकवान जो हर किसी को पसंद आए| छठ के बाद कोई बिहारी जब दिल्ली मुंबई या ओर कहीं बिहार से बाहर प्रदेश लौटते है तब उनके साथी का सबसे पहला प्रश्न होता है की ठेकुआ लाये हो?
छठ पर्व एक वैश्विक पर्व
भारत के किसी कोने बिहार से निकल कर यह पर्व अब न केवल भारत बल्कि देश विदेश में भी एक अपनी पहचान कायम कर रहा है|धीरे धीरे यह पर्व बिहार की धरती से निकल कर दिल्ली,मुंबई से होते हुए हर वो जगह फैलता जा रहा है जहाँ सनातन धर्म है|यह अब न केवल बिहारियों का त्योहार रहा बल्कि पूरे सनातन धर्म का बन चुका है|
छठ पर्व मिट्टी और माँ का एक साथ बुलावा
एक बिहारी के लिए सबसे मायूसी भरा पल कब होता पता है जब छठ के अवसर पर वो किसी कारणवश बिहार में अपने गाँव न आ पाए|
कहते है एक बिहारी को जितना छठ का इंतज़ार रहता उतना किसी और त्योहार या अवसर का नही होता| यह वह मौका होता जब सभी परिवार एक साथ मिल कर छठ पर्व मानाने एकत्रित होते|छठ पर्व में बिहार से बाहर रह रहे बिहारियों को उसकी मिट्टी और माँ एक साथ मिलकर आवाज़ देती| और जब मिट्टी और माँ दोनों एक साथ पुकारे तो बेटे को सात समंदर पार से भी आना ही पड़ता है|
छठ मैय्या का डाला सर पर उठा कर छठ घाट तक जाने के लिए अगर आप इस साल अपने गाँव नहीं आ पाए तो आप से निवेदन है की अगले साल जब मिट्टी और माँ आपको एक साथ पुकारे तो अपने गाँव जरूर आए|
अंत में बस इतना ही कहूँगा की,
“छठ पर्व मनाइए कभी बिहार में,
बड़ा आनंद है इस त्योहार में”
