सदियों से ही दुर्गा पूजा हिन्दुओ के लिए आनंद और उल्लास का त्योंहार रहा है| दुर्गा पूजा को लेकर अलग अलग जगह के लोगों में अलग अलग उत्साह देखने को मिलता है|कहीं की धार्मिक तो कहीं की पौराणिक तो कहीं की साज-सज्जा को लेकर चर्चा का विषय बना रहता है|
मुंगेर की बड़ी देवी और उसके परिवार जो शादीपुर (मुंगेर) में है उनसे कौन नहीं परिचित होगा | दिल्ली मुंबई या फिर बैंगलोर जैसे मेट्रो शहर में यदि किसी पूजा घर में या किसी दफ्तर में बड़ी माँ की तश्वीर देखने को मिल जाए तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है| लोग दूर-दूर से माँ की एक झलक के लिए आते और अपने आप को सौभाग्यशाली बताते है|
कल्याणपुर की बड़ी देवी
यहीं पास में ही कल्याणपुर की बड़ी दुर्गा माँ विराजती है| जिनको लेकर लोगों में एक अलग ही श्रध्दा, उत्साह और उल्लास का बाहव देखने को मिलता है| लोगों का कहना है की ये सिर्फ हमारे लिए एक मंदिर नहीं बल्कि हमारे लिए मान और सम्मान है|
वहीँ आज हम बात करेंगे मुंगेर शहर से लगभग 20 किलोमीटर की दुरी पर मुंगेर-भागलपुर हाईवे पर स्थित एक छोटे से गाँव कल्याणपुर की| वैसे तो यह गाँव है बहुत छोटा सा परन्तु इसकी खूबसूरती और ग्रामीणों की मिलन-सारिता से एक पल भी ऐसा नही प्रतीत नहीं होगा की आप इनके लिए अजनबी हो|
मंदिर से संबंधित कई मान्यताएँ
इस मंदिर को लेकर कई मान्यताएं भी है जिनमे कुछ रोचक तो कुछ जिज्ञासापूर्ण है| स्थानीय से पता चला की इस मंदिर में लगभग 358 वर्ष पूर्व से ही दुर्गा पूजा होती है| गंगा के तट पर बसा यह मंदिर अपने पौराणिक, मूर्तिकला तथा प्राकृतिक कारणों से काफी महत्त्व रखता है| समय, युग और परिवेश सब बदल गया लेकिन इस मंदिर की परंपरा तनिक भी नहीं बदली| पूर्व से ही इस मंदिर में सुबह-शाम आरती का आयोजन होता है जिसमे आस पास के ग्रामीण अपना सहयोग करते है| मंदिर की आरती से सालों भर गाँव का वातावरण भक्तिमय रहता है|
इस मंदिर की मंदिर से सम्बंधित एक कयास ये भी है की इसके स्थापना काल में यहाँ की आबादी में गैर हिन्दुओं की बहुलता थी जिनका योगदान इस मंदीर के स्थापना में काफी ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है| वर्त्तमान में भी यहाँ हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द्र पूर्ण होकर इस उत्सव में भाग लेते है|
स्थानीय लोगों से पता चला की जब इस स्थान पर पहली बार माता की प्रतिमा माता की प्रतिमा बनाई जा रही थी तब कलकत्ता के कलाकारों द्वारा कलकत्ता से लायी गयी मिट्टी से इस प्रतिमा का निर्माण किया गया और तब से लेकर अब तक ये परंपरा कायम है|
महानवमी के दिन माता का रौद्र रूप
सप्तमी, महाअष्टमी, महानवमी, और विजयदशमी के दिन मुख्य मेला का आयोजान होता है|श्रद्धा भक्ति तथा सच्चे मन से पूजा करने वालों की मां हर मनोकामना पूरी करती हैं। इस मंदिर में दूर-दराज से लोग दर्शन करने आते है| जिनकी सुरक्षा व्यवस्था यूथ क्लब के सदस्यों के हाथों होती है| मंदिर के सचिव शशि रंजन दुबे की माने तो मंदिर में हर वर्ष मां का स्वरुप एक तरह का होता है। नवमी को मंदिर में कुंवारी कन्याओं के भोजन के बाद बलि देने की प्रथा है। यहाँ पाठा की बलि के बाद भैंसा की बलि दी जाती है। इस दिन दिन माता की मूर्ति में रौद्र रुप दिखाई देती है।
यहाँ की साज-सज्जा व पंडाल भी होता मुख्य आकर्षण का केंद्र तथा बॉलीवुड-हॉलीवुड कलाकारों का कला प्रदर्शन
यहाँ माता की शक्ति के अलावे यहाँ की साज-सज्जा और भव्य पंडाल पूरे जिले की मुख्य आकर्षण का केंद्र बना रहता है| यहाँ साज-सज्जा व पंडाल को बनाने के लिए दूर दराज जैसे राजस्थान , कलकत्ता आदि जगहों से आए कलाकारों को आमंत्रित किया जाता है| इतना ही नहीं यहाँ होने वाले कार्यक्रमों में देश-विदेश से आए कलाकार भी अपनी कला का प्रदर्शन करते है|
ख़ास बात ये यहाँ की सजावट किसी थीम विशेष होती है| यहाँ के पंडाल कभी पेरिस का एफिल टावर तो कभी जयपुर के हवामहल तो कभी मुंबई के होटल ताज तो कभी इंडिया गेट की पर आधारित होते है जिसे देखने वाले प्रफुल्लित तो होते ही है साथ ही आश्चर्यचकित भी|